जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ थे। श्रेयांसनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में सिंहपुरी (आधुनिक सहारनपुर के निकट) में माघ कृष्ण एकादशी को हुआ था। उनके पिता राजा विष्णु और माता रानी विनाता थीं। जैन ग्रंथों के अनुसार, दीक्षा लेने के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की और फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें सिंह (Lion) के प्रतीक से पहचाना जाता है। श्रेयांसनाथ ने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों का पालन करने का उपदेश दिया। उनका मानना था कि कर्मों से मुक्ति पाने के लिए सही ज्ञान, सही विश्वास और सही आचरण का पालन करना आवश्यक है। जैन धर्म में उनका महत्वपूर्ण स्थान है और उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है।

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